१८.५१ – बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

बुद्ध्या  विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं  नियम्य च |
शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ  व्युदस्य च ||

पद पदार्थ

बुद्ध्या विशुद्धया युक्त: – आत्मा के बारे में यथार्थ ज्ञान के साथ
धृत्या – (पहले बताई गई) सात्विक धृति के साथ
आत्मानं – मनको
नियम्य च – सांसारिक विषयों से हटाकर
शब्दादीन् विषयान् – शब्द (ध्वनि), स्पर्श , रूप रस (स्वाद), गंध जैसी इंद्रियोंको
त्यक्त्वा – त्यागकर
रागद्वेषौ – रुचि और अरुचि
व्युदस्य च – त्याग कर

सरल अनुवाद

आत्मा के विषय में यथार्थ  ज्ञान के साथ तथा पहले बताई गई सात्विक धृति (स्थिरता) के साथ, मन को सांसारिक विषयों से हटाकर, शब्द (ध्वनि), स्पर्श , रूप , रस (स्वाद), गंध जैसी इन्द्रियोंको  त्याग कर,  रुचि और अरुचि को त्याग कर…

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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