१८.५८ – अथ चेत्तत्वम् अहङ्कारान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

अथ चेत् त्वम्  अहङ्कारान् न  श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि   ||

पद पदार्थ

अथ – अन्यथा
त्वम् – तुम
अहङ्कारान् – अपने आप को सर्वज्ञ मानने के अभिमान में
न श्रोष्यसि चेत् – यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे
विनङ्क्ष्यसि – नष्ट हो जाओगे

सरल अनुवाद

अन्यथा, अपने आप को सर्वज्ञ  मानने के अभिमान में  यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो नष्ट हो जाओगे।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १८ श्लोक ५९

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