श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।
कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्।।
पद पदार्थ
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
एतानि कर्माणि अपितु – इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन))
सङ्गं – “मेरा” का विचार
फलानि च – परिणाम की इच्छा
त्यक्त्वा – छोड़कर
कर्तव्यानी – (मुमुक्षुओं द्वारा)करना चाहिए
इति – यह
मे – मेरा
निश्चितम् उत्तमं मतं – दृढ़ एवं सर्वोच्च सिद्धांत है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन)) को (मुमुक्षुओं द्वारा) “मेरा” का विचार और परिणाम की इच्छा छोड़कर करना चाहिए; यह मेरा दृढ़ एवं सर्वोच्च सिद्धांत है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18-6/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org