१८.६ – एतान्यपि तु कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।
कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्।।

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
एतानि कर्माणि अपितु – इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन))
सङ्गं – “मेरा” का विचार
फलानि च – परिणाम की इच्छा
त्यक्त्वा – छोड़कर
कर्तव्यानी – (मुमुक्षुओं द्वारा)करना चाहिए
इति – यह
मे – मेरा
निश्चितम् उत्तमं मतं – दृढ़ एवं सर्वोच्च सिद्धांत है

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन)) को (मुमुक्षुओं द्वारा) “मेरा” का विचार और परिणाम की इच्छा छोड़कर करना चाहिए; यह मेरा दृढ़ एवं सर्वोच्च सिद्धांत है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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