श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुम् अर्हसि ॥
पद पदार्थ
जातस्यं – वो जो जन्म लेता है
मृत्यु: – मौत
ध्रुव: – अनिवार्य है
मृतस्य – वो जो मरता है
जन्म च – पुनर्जन्म
ध्रुव: – अनिवार्य है
तस्मात् – इसलिए
अपरिहारे अर्थे – इस अनिवार्य विषय पर
त्वं – तुम
शोचितुं – दुःखित होने का
न अर्हसि – कोई कारण नहीं है
सरल अनुवाद
वो जो जन्म लेता है, उसके लिए मौत अनिवार्य है और वो जो मरता है, उसके लिए पुनर्जन्म अनिवार्य है | इसलिए इस अनिवार्य विषय पर तुम दुःखित होने का कोई कारण नहीं है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/2-27/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org