२.५१ – कर्मजं बुध्दियुक्ता हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक

कर्मजं  बुध्दियुक्ता  हि फलं  त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्ध विनिर्मुक्ताः पदं  गच्छन्त्यनामयम्   ॥

पद पदार्थ

मनीषीणः – बुद्धिमान व्यक्ति 
बुद्धि युक्ता: – बुद्धि के साथ (पहले समझाया गया)
कर्मजं  – कर्म के कारण
फलं – परिणाम ( स्वर्ग आदि)
त्यक्त्वा – त्याग  देना
जन्म बंध विनिर्मुक्ता: – जन्म से पूरी तरह से छुटकारा
अनामयम् – दु:ख से रहित
पदम् – परम्धाम
गच्छन्ति ही – क्या नहीं पहुँच रहे हैं?

सरल अनुवाद

क्या वो बुद्धिमान व्यक्ति, (पहले समझाया  गया) बुद्धि के साथ किये कर्मों के कारण  होते परिणामों (स्वर्ग आदि) को त्यागकर ,जन्म से पूरी तरह छुटकारा पाकर दुःख से रहित परम्धाम नही पहुँच रहे हैं?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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