३.३२ – ये त्वेतदभ्यसूयन्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्‌ ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान् विद्धि नष्टान् अचेतसः ॥

पद पदार्थ

ये तु – वो लोग
एतत – इस
मे मतं – मेरे सिद्धांत
न अनुतिष्ठन्ति – अभ्यास नहीं करते हैं ( और जो इस सिद्धांत में भरोसेमंद नहीं हो )
ये अभ्यसूयन्त: – जो इस सिद्धांत के प्रति ईर्ष्यालु हो
तान् – वो तीन प्रकार के लोग
सर्वज्ञान विमूढां – सभी ज्ञान से विस्मय हैं
नष्टान् – और इसलिए असत ( जड़ ) जैसे हैं
अचेतसः – ( वास्तविक ज्ञान से हीन ) जो मन / ह्रदय का प्रयोजन को ठीक तरह से नहीं समझ सके
विद्धि – जानो

सरल अनुवाद

इस बात को जानो कि वो तीन प्रकार के लोग – जो मेरे सिद्धांत का अभ्यास नहीं करते हैं, जो इस सिद्धांत में भरोसेमंद नहीं हैं और इस सिद्धांत के प्रति ईर्ष्यालु हैं , ये सभी ज्ञान से विस्मय हैं और इसलिए असत ( जड़ ) जैसे हैं | ( वास्तविक ज्ञान से हीन ) ये तीन प्रकार के लोग, मन / ह्रदय का प्रयोजन ठीक तरह से नहीं समझ सके |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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