५.१६ – ज्ञानेन तु तदज्ञानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: |
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ||

पद पदार्थ

येषां – उन जीवात्माओं
आत्मन ज्ञानेन तु – स्वयं के बारे में ज्ञान
तत् अज्ञानं – वो कर्म ( सद्गुण / दुर्गुण )
नाशितं – विनाश होना
तेषां – उनको
परं तत् ज्ञानम् – स्वयं के बारे में वो उच्चतम ज्ञान
आदित्यवत् – सूर्य के जैसे
प्रकाशयति – रोशन करता है

सरल अनुवाद

उन जीवात्माओं के लिए जिनके कर्म ( सद्गुण / दुर्गुण ) स्वयं के बारे में उस ज्ञान के कारण विनाश हो गया हो , वो उच्चतम ज्ञान सूर्य के जैसे रोशन ( सभी को ) करता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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