६.१६ – नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: |
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ||

पद पदार्थ

अर्जुन – हे अर्जुन !
अत्यश्नत: तु – जो बहुत अधिक खाता है
योग: – योग अभ्यास
न अस्ति – उत्पन्न नहीं होता
एकान्तं – बहुत
अनश्नत: च – जो कम खाता है
न – योग अभ्यास उत्पन्न नहीं होता
अति स्वप्न शीलस्य च – जो बहुत अधिक सोता है
न – योग अभ्यास उत्पन्न नहीं होता
जाग्रत च – जो सदैव जागता रहता है
न एव – योग अभ्यास उत्पन्न नहीं होता

सरल अनुवाद

हे अर्जुन ! योग अभ्यास उस व्यक्ति को उत्पन्न नहीं होता जो बहुत अधिक खाता है या जो कम खाता है ; वह उस व्यक्ति को भी उत्पन्न नहीं होता जो बहुत अधिक सोता है या सदैव जागता रहता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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