६.१७ – युक्ताहारविहारस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ||

पद पदार्थ

युक्ताहारविहारस्य – पर्याप्त मात्रा में भोजन और पर्याप्त शारीरिक गतिविधियाँ करना
कर्मसु – उसके कर्मों में
युक्त चेष्टस्य – पर्याप्त व्यवस्ताएँ होना
युक्त स्वप्न अवबोधस्य – पर्याप्त नींद और जागना
दु:खहा – उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे
योग: – योग अभ्यास
भवति – उसमे होता है

सरल अनुवाद

जो पर्याप्त मात्रा में भोजन और पर्याप्त शारीरिक गतिविधियाँ करता है , उसके कर्मों में पर्याप्त व्यवस्ताओं के साथ ; पर्याप्त नींद और जागृति से , उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और उसमे योग अभ्यास उत्पन्न होता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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