श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः ।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन पूछता है
कृष्ण – हे कृष्ण !
श्रद्धया – निष्ठापूर्वक
उपेत: – जिन्होंने योगाभ्यास शुरू किया
अयति: – प्रयासों की कमी (दृढ़ योग अभ्यास में)
(उसी के परिणाम स्वरूप)
योग संसिद्धिं अप्राप्य – जबकि उसका योग पूरा नहीं हुआ है
योगात् चलित मनसा: – मन जो योग अभ्यास में फिसल गया
कां गतिं – किस लक्ष्य (भोग, मुक्ति या नरक में से)
गच्छति – पहुँचेगा ?
सरल अनुवाद
हे कृष्ण! यदि कोई व्यक्ति निष्ठापूर्वक योगाभ्यास शुरू करता है, लेकिन (दृढ़ योगाभ्यास में) प्रयासों की कमी रखता है, जिसके परिणामस्वरूप उसका मन योगाभ्यास में से फिसल जाता है, और उसका योग पूरा नहीं होता है, तो ऐसा व्यक्ति किस लक्ष्य तक पहुँचेगा ?
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/6-37/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org