७.१२ – ये चैव सात्विका  भावा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

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श्लोक

ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये |
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ||

पद पदार्थ

ये च एव सात्विका: भावा: – इस दुनिया में वे सत्ताएं जिनमें सत्वगुण प्रचुर मात्रा में है।
ये च (एव) राजस: तमसा: – वे सत्ताएं जिनमें रजो गुण (जुनून) और तमो गुण (अज्ञान) की प्रचुरता है
तान मत्त एव इति – कि वे मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं
मयि इति – कि वे मुझमें हैं
विद्धि – जान लो;
अहं तु – लेकिन मैं
तेषु न – उन पर निर्भर नहीं

सरल अनुवाद

यह जान लो कि , इस संसार में जिन प्राणियों में सत्वगुण (अच्छाई), रजोगुण (जुनून) या तमोगुण (अज्ञान) की प्रचुरता है, वे मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं और वे मुझमें ही हैं; लेकिन मैं उन पर निर्भर नहीं हूँ|

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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