७.२० – कामै: तै: तै: हृतज्ञानाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

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श्लोक

कामैस्तैस्तैहृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥

पद पदार्थ

(इस दुनिया में कई करोड़ लोग)
स्वया प्रकृत्या – अनादि-आदि प्रवृत्ति
नियताः – सदैव साथ रहने के कारण
तै: तै: – वो ( प्रवृत्ति )
कामै: – सांसारिक वस्तुओं ( जो तीन प्रकार के गुणों से बने हुए हैं – सत्व , रजस् , तमस् )
हृत ज्ञानाः – चुराये हुए ज्ञान ( मेरे बारे में ) से
( उन वस्तुओं को प्राप्त कर सके )
अन्य देवताः – मेरे अलावा दूसरे देवताओं
तं तं नियमम् आस्थाय – उन प्रक्रियाओं के माध्यम से जो उन देवताओं को आनंद प्रदान करती हैं
प्रपद्यन्ते – देवताओं के प्रति समर्पण करते हैं और उनकी पूजा करते हैं

सरल अनुवाद

(इस दुनिया में कई करोड़ लोग) सांसारिक वस्तुओं के प्रति अपनी अनादि-आदि प्रवृत्ति के साथ सदैव रहने के कारण ( जो तीन प्रकार के गुणों से बने हुए हैं – सत्व , रजस् , तमस् ) , चुराये हुए ज्ञान ( मेरे बारे में ) से [ अर्थात् मेरे बारे में जानकारी के बिना ] मेरे अलावा दूसरे देवताओं के प्रति समर्पण करते हैं और उन प्रक्रियाओं के माध्यम से उनकी पूजा करते हैं जो उन देवताओं को आनंद प्रदान करती हैं जिससे उन वस्तुओं को प्राप्त कर सके |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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