७.२४ – अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक २३

श्लोक

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥

पद पदार्थ

अबुद्धय – अधिकतम जीवात्मा जो मूर्ख हैं
अव्ययं – अविनाशी
अनुत्तमं – सर्वोच्च, बिना कोई तुलना
मम परं भावं – मेरा श्रेष्ठ स्वभाव
अजानन्तं – बिना जाने
मां – मुझे
अव्यक्तं – पहले ऐसे नहीं था
व्यक्तिम् आपन्नं – इस तरह जन्म लिया हूँ [ मेरे पूर्व पुण्यों के कारण ]
मन्यन्ते – मेरे बारे में सोचते हैं

सरल अनुवाद

अधिकतम जीवात्मा जो मूर्ख हैं , मेरी अविनाशी, सर्वोच्च और श्रेष्ठ गुण को बिना जाने , मेरे बारे में यह सोचते हैं कि मैं पहले ऐसे [ सर्वोत्तम प्रभु ] नहीं था और अब [ मेरे पूर्व पुण्यों के कारण ] इस तरह जन्म लिया हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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