८.२ – अधियज्ञः कथं कोऽत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

<< अध्याय ८ श्लोक १

श्लोक

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥

पद पदार्थ

मधुसूदन – जिसने मधु नाम राक्षस को मारा !
अत्र अस्मिन् देहे – इंद्र इत्यादि में , जो शास्त्र में आपके शरीर के रूप में जाने जाते हैं

( जिसे तीन प्रकार के इच्छार्थियों जानना चाहिए [ अर्थात् जो सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं, जो आत्म-आनंद की इच्छा रखते हैं और जो लोग भगवान से कैंकर्य की कामना करते हैं ] )
अधियज्ञः क: – अधियज्ञ किसे कहते हैं ?
कथं – वह अधियज्ञ की गुणवत्ता कैसे प्राप्त की ?
नियतात्मभिः – उन तीन प्रकार के योग्य आर्थियों के द्वारा, जो अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं
प्रयाणकाले च – शरीर त्यागते समय ( अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए )
कथं ज्ञेय: असि ? – तुम्हे किस प्रकार से जानना चाहिए ?

सरल अनुवाद

हे मधुसूदन ! अधियज्ञ ( जिसे तीन प्रकार के इच्छार्थियों जानना चाहिए [ अर्थात् जो सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं, जो आत्म-आनंद की इच्छा रखते हैं और जो भगवान से कैंकर्य की कामना करते हैं ] ) किसे कहते हैं ? जो इंद्र इत्यादि मे है , जो शास्त्र में आपके शरीर के रूप में जाने जाते हैं ? वह अधियज्ञ की गुणवत्ता कैसे प्राप्त की ? शरीर त्यागते समय ( अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ) , उन तीन प्रकार के इच्छार्थियों जो अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं , तुम्हे किस प्रकार से जानना चाहिए ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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