८.३ – अक्षरं ब्रह्म परमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ८

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श्लोक

श्रीभगवान उवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञित: ॥

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – श्री कृष्ण ने कहा
ब्रह्म – ब्रह्म है
परमम् अक्षरं – वो आत्मा जो पदार्थ के किसी भी संबंध से मुक्त हो जाता है
अध्यात्मं – अध्यात्मं है
स्वभाव: उच्यते – केवल पदार्थ है और कुछ नहीं
भूतभाव उद्भवकर: विसर्गः – सन्तान् उत्पन्न करने के लिये उत्सर्जन ( पुरुष के बीज, महिला के अंडाशय में ) की क्रिया
कर्म संज्ञित: – ” कर्म ” कहा जाता है

सरल अनुवाद

श्री कृष्ण ने कहा , ‘ ” ब्रह्म ” वो आत्मा है जो पदार्थ के किसी भी संबंध से मुक्त हो जाता है ; ” अध्यात्मम् ” केवल पदार्थ है और कुछ नहीं ; सन्तान् उत्पन्न करने के लिये उत्सर्जन ( पुरुष के बीज, महिला के अंडाशय में ) की क्रिया को ‘कर्म ‘ कहा जाता है | ‘

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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