९.१९ – तपाम्यहम् अहं वर्षम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

<< अध्याय ९ श्लोक १८

श्लोक

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च |
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ||

पद पदार्थ

अर्जुन – हे अर्जुन !
अहं – मैं
तपामि – गर्मी देता हूँ ( अग्नि , सूर्य आदि को मेरे शरीर के रूप में हैं )
अहं – मैं
वर्षं निगृह्णामि – वर्षा के जल को सोखता हूँ (ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के किरणों के माध्यम से )
वर्षम् उत्सृजामि च – ( वर्षा के ऋतु में , मेघ आदि को अपना शरीर धारण करके ) वर्षा भी देता हूँ
अहं – मैं
अमृतं च एव – मैं संसार के लोगों को पालने वाली सत्ताएँ हूँ
मृत्यु च – मैं संसार के लोगों को नष्ट करने वाली सत्ताएँ हूँ
सत् – मैं वर्तमान की सभी सत्ताएँ हूँ
असत् च – मैं भूत और भविष्य की सभी सत्ताएँ हूँ

सरल अनुवाद

हे अर्जुन ! मैं गर्मी देता हूँ , मैं वर्षा के जल को सोखता हूँ और वर्षा भी देता हूँ ; मैं संसार के लोगों को पालने और नष्ट करने वाली सत्ताएँ हूँ , वर्तमान, भूत और भविष्य की सभी सत्ताएँ मैं ही हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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