श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ये त्वन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ||
पद पदार्थ
कौन्तेय – हे कुंतीपुत्र !
ये तु – जो लोग
अन्य देवता भक्ता – अन्य देवताओं ( जैसे इंद्र , रुद्र, ब्रह्मा इत्यादि ) के प्रति श्रद्धा रखते हैं
श्रद्धया अन्विता: – निष्ठापूर्वक
यजन्ते – ( उन्हें पूजनीय मानकर) यज्ञ इत्यादि रूप में उनकी पूजा करते हैं
ते अपि – वे भी
मामेव – मेरी ( जो उन सभी देवताओं का अन्तर्यामी हूँ ) ही
अविधि पूर्वकम् – जैसा कि वेदों में नहीं बताया गया है ( कि हर एक व्यक्ति यह समझकर यज्ञ में संलग्न होना चाहिए कि एम्बेरुमान् ही सभी देवताओं का अन्तर्यामी हैं )
यजन्ति – यज्ञ आदि कर रहे हैं
सरल अनुवाद
हे कुंतीपुत्र ! जो लोग अन्य देवताओं ( जैसे इंद्र , रुद्र, ब्रह्मा इत्यादि ) के प्रति श्रद्धा रखते हैं और ( उन्हें पूजनीय मानकर) यज्ञ इत्यादि रूप में निष्ठापूर्वक उनकी पूजा करते हैं , वे भी मेरी ही आराधना के लिये यज्ञ आदि कर रहे हैं लेकिन ऐसा कर रहे हैं जैसा कि वेदों में नहीं बताया गया है ( कि हर एक व्यक्ति यह समझकर यज्ञ में संलग्न होना चाहिए कि एम्बेरुमान् ही सभी देवताओं का अन्तर्यामी हैं ) |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/9-23/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org