९.२२ – अनन्या: चिन्तयन्तो माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते |
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||

पद पदार्थ

अनन्या : – बिना किसी अन्य लक्ष्य के ( मेरे बारे में सोचने के अलावा )
मां चिन्तयन्त: – मेरे बारे में सोचते हैं
ये जना: – उन महान आत्माओं
(मां) पर्युपासते – पूर्ण रूप में मेरी पूजा करते हैं ( मेरे दिव्य गुण और संपत्ति के साथ )
नित्याभियुक्तानां तेषां – उनको जो सदैव मेरे साथ रहना चाहते हैं
अहं – मैं
योग क्षेमं – योग ( मुझ तक पहुँचने ) और क्षेम ( संसार में वापस न लौटना पड़े )
वहामि – प्रदान करता हूँ

सरल अनुवाद

उन महान आत्माओं के लिए जो बिना किसी अन्य लक्ष्य के, मेरे बारे में सोचते हैं, और पूर्ण रूप में मेरी पूजा करते हैं ( मेरे दिव्य गुण और संपत्ति के साथ ) और जो सदैव मेरे साथ रहना चाहते हैं, मैं उनको योग ( मुझ तक पहुँचने ) और क्षेम ( संसार में वापस न लौटना पड़े ) प्रदान करता हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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