श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च |
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ||
पद पदार्थ
अहम् एव हि – केवल मैं ही
सर्व यज्ञानां – समस्त यज्ञों का
भोक्ता च – भोक्ता हूँ
प्रभु च – दाता हूँ
मां – ( इस प्रकार ) मुझे
ते तु – जो केवल पूर्व भाग (कर्मकांड संबंधी पहलूओं ) में लगे हुए हैं
न तत्त्वेन अभिजानन्ति – वास्तव में ( वास करने वाली अन्तरात्मा के रूप में ) नहीं जानते
अत: च्यवन्ति – और इसलिए वे मुख्य लाभों से वंचित रह जाते हैं
सरल अनुवाद
मैं ही समस्त यज्ञों का भोक्ता और दाता हूँ | जो केवल पूर्व भाग (कर्मकांड संबंधी पहलूओं ) में लगे हुए हैं , मुझे वास्तव में ( वास करने वाली अन्तरात्मा के रूप में ) नहीं जानते और इसलिए वे मुख्य लाभों से वंचित रह जाते हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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