९.२७ – यत्करोषि यदश्नासि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ||

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कंतीपुत्र !
यत् करोषि – तुम (अपनी आजीविका के लिए) जो भी सांसारिक गतिविधियाँ करते हो
यत् अश्नासि – (इस दुनिया में जीवित रहने के लिए ) तुम जो कुछ भी खाते हो

(जैसे कि वेदों में बताया गया है)
यत् जुहोषि – तुम जो भी अग्नि अनुष्ठान करते हो
यत् ददासि – तुम जो भी दान करते हो
यत् तपस्यसि – तुम जो भी तप करते हो
तत् – वह सब
मत् अर्पणं कुरुष्व – मुझे समर्पित करो

सरल अनुवाद

हे कंतीपुत्र ! तुम (अपनी आजीविका के लिए) जो भी सांसारिक गतिविधियाँ करते हो , (इस दुनिया में जीवित रहने के लिए ) तुम जो कुछ भी खाते हो , (जैसे कि वेदों में बताया गया है) तुम जो भी होम (अग्नि अनुष्ठान ) करते हो, तुम जो भी दान करते हो, तुम जो भी तप करते हो, वह सब मुझे समर्पित करो |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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