९.३२ – मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

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श्लोक

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ||

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुंतीपुत्र !
स्त्रिय: – औरत
वैश्या – वैश्य ( व्यापारी वर्ग )
तथा शूद्रा: – क्षूद्र ( श्रमिक वर्ग ) आदि भी
पापयोनय ये अपि स्यु: – जिन्होंने निम्न योनियों में जन्म लिए हैं
ते अपि – वे भी
मां – मुझे
व्यपाश्रित्य – पूर्ण समर्पण के द्वारा मुझे प्राप्त कर लेते हैं
परां गतिम् – परम लक्ष्य को
यान्ति हि – वे भी प्राप्त कर लेते हैं

सरल अनुवाद

हे कुंतीपुत्र ! जिन्होंने निम्न योनियों में जन्म लिए हैं , जैसे औरत , वैश्य, क्षूद्र आदि भी पूर्ण समर्पण के द्वारा मुझे प्राप्त कर लेते हैं और वे भी परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं |

अतिरिक्त टिप्पणी :

  • यहाँ औरत , वैश्य, क्षूद्र आदि को हीन जन्म के रूप में रेखांकित किये जाने का कारण, कर्म, ज्ञान और भक्ति योग में संलग्न होने के उनके अधिकार का अभाव है | वास्तव में , जैसे कि अगले श्लोक में बताया गया है, इस संसार (भौतिक क्षेत्र) में सभी जन्म अस्थायी और दुखद प्रकृति से बंधे हैं | भगवान यहाँ समझाते हैं और अंत में भी महत्त्व देते हैं कि शरणागति ही सबके लिए उचित साधन है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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