९.३३ – किं पुन: ब्राह्मणा: पुण्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ९

<< अध्याय ९ श्लोक ३२

श्लोक

किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ||

पद पदार्थ

पुण्या: – पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ है
ब्राह्मणा: – ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग )
राजर्षय तथा – राजर्षि ( राजसी साधु )
भक्ता: – यदि वे मेरे प्रति भक्ति में लगें तो

( कि उनको मुक्ति प्राप्त होगी )
किं पुन: – क्या यह समझाना आवश्यक है ?

(इसलिए )
अनित्यं – अस्थायी
असुखं – दुःख से भरा
इमं लोकं – इस संसार में
प्राप्य – उपस्थित होने के कारण
मां भजस्व – मेरे प्रति भक्ति में लगे रहो

सरल अनुवाद

क्या यह समझाना आवश्यक है कि यदि वे ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग ) और राजर्षि ( राजसी साधु ) जिनके पूर्व पुण्य कर्मों के कारण ऐसा जन्म हुआ है , मेरे प्रति भक्ति में लगें तो उनको मुक्ति प्राप्त होगी ? इसलिए इस संसार में उपस्थित होने के कारण जो अस्थायी है और दुःख से भरा है , मेरे प्रति भक्ति में लगे रहो |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ९ श्लोक ३४

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/9-33/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org