१५.१४ – अहं वैश्वानरो भूत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १३ श्लोक अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: |प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् || पद पदार्थ अहम् – मैंवैश्वानर: भूत्वा – जाठराग्नि (पाचन की अग्नि) होने के कारणप्राणिनां – सभी प्राणियों केदेहम् आश्रित: – शरीर में स्थित होने के कारणचतुर्विधम् अन्नं – चार … Read more

१५.१३ – गामाविश्य च भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १२ श्लोक गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा |पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: || पद पदार्थ अहम् – मैंगाम् आविश्य – पृथ्वी में व्याप्त होकरभूतानि – समस्त प्राणियोंओजसा – मेरी अजेय शक्ति सेधारयामि – धारण करता हूँरसात्मक: सोम: भूत्वा – अमृतमय … Read more

१५.१२ – यदादित्यगतं तेजो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक ११ श्लोक यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् |यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् || पद पदार्थ आदित्य गतं – सूर्य में विद्यमानयत् तेज: – उस तेजअखिलं जगत् – समस्त लोकों कोभासयते – प्रकाशित करता हैचन्द्रमसि यत् – चंद्रमा के उस तेज (जो लोकों … Read more

१५.११ – यतन्तो योगिनश्चैनं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १० श्लोक यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् |यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: || पद पदार्थ यतन्त: योगिन: च – जो योगी (मेरे प्रति समर्पण करने के लिए कर्मयोग जैसे ) प्रयासों में लगे रहते हैं आत्मानि अवस्थितम् – अपने शरीर में स्थितएनं – इस … Read more

१४.१३ – अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १२ श्लोक अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन।। पद पदार्थ कुरुनन्दन – हे कुरुवंश के वंशज!अप्रकाश: – ज्ञान का अभावअप्रवृत्ति: च – आलस्यप्रमाद: – असावधानीमोह: एव च – और विपरीत ज्ञानएतानि – ये सबतमसि विवृद्धे – जब तमोगुण … Read more

१४.१२ – लोभः प्रवृत्तिरारम्भः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ११ श्लोक लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत के वंशजों में सर्वोत्तम!लोभः – कृपणताप्रवृत्ति: – व्यर्थ कार्यकर्मणाम् आरम्भ: – विशेष रूप से लक्ष्य पर केन्द्रित होकर कार्य आरम्भ करनाअशमः – इन्द्रियों पर नियंत्रण … Read more

१४.११ – सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १० श्लोक सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन् प्रकाश उपजायते।ज्ञानं यदा तदा विद्याद् विवृद्धं सत्त्वमित्युत।। पद पदार्थ अस्मिन् देहे – इस (भौतिक) शरीर मेंसर्व द्वारेषु – नेत्र आदि इन्द्रियों जैसे द्वारों में. जिनके द्वारा ज्ञान संचारित होता हैप्रकाश ज्ञानं – ज्ञान जो वस्तुओं के … Read more

१४.१० – रज: तम: चाभिभूय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ९ श्लोक रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।। पद पदार्थ भारत – हे भारतवंशी! (शरीर के तीन गुणों में)रज: तम: च अभिभूय- रजोगुण और तमोगुण पर हावी होकरसत्त्वं भवति – (कभी-कभी) सत्व गुण प्रबल होता हैसत्त्वं तम: … Read more

१४.९ – सत्त्वं सुखे सञ्जयति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ८ श्लोक सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!सत्त्वं – सत्व गुणसुखे सञ्जयति – मुख्यतः आनन्द में आसक्ति उत्पन्न करता हैरजः – रजस (राग ) की गुणवत्ताकर्मणि (सञ्जयति) – मुख्यतः कर्मों … Read more

१४.८ – तमस् त्वज्ञानजं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ७ श्लोक तमस् त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरत के वंशज!तम: तु – तमो गुण (अज्ञानता का गुण) के विषय मेंअज्ञान जं – संस्थाओं की प्रकृति को गलत समझने के कारण उत्पन्न होता हैसर्व देहिनाम् … Read more