१८.२० – सर्वभूतेषु येनैकं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १९ श्लोक सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।। पद पदार्थ येन – जिस ज्ञान के द्वाराविभक्तेषु – अनेक प्रकार के गुणसर्व भूतेषु – सभी प्राणियों में है (ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्गीकरण वाले, जो कर्म में लगे हुए हैं)अविभक्तं – … Read more

१८.१९ – ज्ञानं कर्म च कर्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १८ श्लोक ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।। पद पदार्थ गुण संख्याने – गुणों (जैसे सत्व, रजस् और तमस् ) के प्रभाव को गिनते समयगुण भेदतः – गुणों की प्रकृति के अनुसारज्ञानं – ज्ञान (करने वाले … Read more

१८.१८ – ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १७ श्लोक ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।। पद पदार्थ कर्म चोदना – कर्म के सम्बन्ध में वेद के नियम (अनुष्ठानात्मक पूजाएँ जैसे कि ज्योतिष्टोम आदि)ज्ञानं – ज्ञान (कर्म के बारे में)ज्ञेयं – जो कर्म किया जाना … Read more

१८.१७ – यस्य नाहंकृतो भावो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १६ श्लोक यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।हत्वाऽपि स इमान् लोकान् न हन्ति न निबध्यते।। पद पदार्थ यस्य भाव: – (कर्तापन पर) जिसके विचारन अहंकृत: – “मैं कर्ता हूँ” के अभिमान से उत्पन्न नहीं हो रहे होयस्य बुद्धि: – जिसकी … Read more

१८.१६ – तत्रैवं सति कर्तारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १५ श्लोक तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः।पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।। पद पदार्थ एवं सति – जब कि यह इस प्रकार है (अर्थात् जीवात्मा के कार्य परमात्मा की अनुमति पर निर्भर हैं)तत्र – अपने कार्यों मेंकेवलम् आत्मानं तु – स्वयं … Read more

१८.१५ – शरीरवाङ्मनोभिर्यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १४ श्लोक शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः।न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः।। पद पदार्थ न्याय्यं वा – जो शास्त्र में स्थापित हैविपरीतं वा – जो शास्त्र में निषिद्ध हैयत् कर्म – किसी भी कार्यशरीर वाङ् मनोभि: – शरीर, वाणी और मन … Read more

१८.१४ – अधिष्ठानं तथा कर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १३ श्लोक अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।। पद पदार्थ अधिष्ठानं – शरीरतथा कर्ता – आत्मापृथक् विधं करणं च – कर्मेन्द्रिय (मन सहित पाँच क्षमताएँ)विविधा: पृथक् चेष्टा च – इसी प्रकार प्राण (प्राणवायु) जिसके पाँच विभिन्न … Read more

१८.१३ – पञ्चैतानि महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १२ श्लोक पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे।सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्।। पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहो!सांख्ये कृतान्ते – वेद के अनुरूप सच्चे ज्ञान का उपयोग करके सत्य का निर्धारण करते समयसर्व कर्मणां सिद्धये – सभी कार्यों को पूरा करने … Read more

१८.१२ – अनिष्टमिष्टं मिश्रं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ११ श्लोक अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्।भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित्।। पद पदार्थ अनिष्टं – नरक आदि जो दुःख देते हैं (कर्म करने वाले को)इष्टं – स्वर्ग आदि जो आनंद देते हैं (कर्म करने वाले को)मिश्रं च – … Read more

१८.११ – न हि देहभृता शक्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १० श्लोक न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।। पद पदार्थ देह भृता – शरीर को धारण करने वाली आत्मा द्वाराकर्माणि – कर्मोंअशेषतः त्यक्तुं – पूर्णतः त्याग करनान हि शक्यं – क्या संभव है?य: – वहकर्म फल त्यागी … Read more