३.७ – यस् त्विन्द्रियाणि मनसा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ६ श्लोक यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेSर्जुन ।कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!य : तु – वह व्यक्तिमनसा – मन के साथ (जो आत्मा पर केंद्रित है)इन्द्रियाणि – इंद्रियों  को नियम्य   – उन्हें शास्त्र द्वारा निर्मित कर्मों में … Read more

३.६ – कर्मेन्द्रियाणि संयम्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ५ श्लोक कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥ पद पदार्थ यः – जो ज्ञान योग पर ध्यान केंद्रित होकर्मेन्द्रियाणि – कर्मेन्द्रियाँ  जैसे  मुँह, वाणी, हाथ, पैर आदिसंयम्य – उन्हें अच्छी तरह से नियंत्रित करना (ताकि … Read more

३.५ – न हि कश्चित् क्षणम् अपि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ४ श्लोक न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ पद पदार्थ हि – क्योंकिकश्चित्  – कोई भीजातु – सदैवक्षणं अपि – एक क्षण के लिए भीअकर्मकृत – बिना कर्म कियेन तिष्ठति  – नहीं रह सकता;सर्व:- हर कोई … Read more

३.४ – न कर्मणाम् अनारम्भान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३ श्लोक न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं  पुरुषोSश्नुते ।न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥ पद पदार्थ पुरुष :- कोई भी मनुष्य (जो इस संसार में  है)कर्मणां अनारम्भान् – कर्म योग शुरू करने के लगाव न होने के कारण नैष्कर्म्यम् – ज्ञान योगन अश्नुते – प्राप्त … Read more

३.३ – लोकेSस्मिन् द्विविधा निष्ठा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २ श्लोक श्री भगवान् उवाचलोकेSस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले अनघा! – हे निर्दोष !अस्मिन लोकेन – इस दुनिया में जो विभिन्न प्रकृति के लोगों से भरी हुई … Read more

३.२ – व्यामिश्रेणेव वाक्येन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १ श्लोक व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं  मोहयसीव मे ।तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोSहमाप्नुयाम् ॥  पद पदार्थ व्यामिश्रेण – विरुद्ध वाक्येन इव – वचन मे –  मेरा अपनाबुद्धिं  – बुद्धिमोहयसी  इव – ऐसा प्रतीत होता है कि तुम मुझे भ्रमित कर रहे हो तत्  – इसलिएयेन … Read more

३.१ – ज्यायसी चेत् कर्मणस् ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय २ श्लोक ७२ श्लोक अर्जुन उवाचज्यायसी चेत् कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने  कहा,जनार्दन – हे जनार्दन!केशव – हे केशव!कर्मण:  कर्म से बुद्धि:- ज्ञान में स्थित होनाज्यायसी – सर्वोत्तम है ते – तुम्हारे … Read more

अध्याय ३ – कर्म योग या कर्म पथ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय २ आळ्वारतिरुनगरी, श्रीपेरुम्बुतूर, श्रीरंगम और तिरुनारायणपुरम में भगवत रामानुज आधार – http://githa.koyil.org/index.php/3/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

२.७२ – एषा ब्राह्मी स्तिथि: पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ७१ श्लोक एषा ब्राह्मी स्तिथि: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।स्थित्वास्यामन्तकालेSपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति  ॥ पद पदार्थ हे पार्थ – हे अर्जुन!एषा स्थिति:- स्वयं का सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए असंबद्ध क्रिया में स्थित होनाब्राह्मी – (ज्ञान योग का पोषण करके) यह आत्मा को, … Read more

२.७१ – विहाय कामान्य: सर्वान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ७० श्लोक विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: ।निर्ममो निरहंकार:स शान्तिमधिगच्छति ॥ पद पदार्थ य: पुमान् – वह आदमीसर्वान् कामान् – सभी सांसारिक सुखविहाय – त्याग करकेनि:स्पृह:- इच्छा रहित होकर (उनमें)निर्मम : – ममकार (अपनापन ) से रहित होकरनिरहंकारः – अहंकार से … Read more