४.३१ – नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३०.५ श्लोक नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ पद पदार्थ कुरु सत्तम – हे कुरु वंश के वंशजों में श्रेष्ठ!अयज्ञस्य – जो नित्य/नैमित्तिक कर्म (दैनिक/विशिष्ट वैधिका गतिविधियों ) से रहित हैअयम लोक: न – सांसारिक लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होतेअन्य: कुत: … Read more