४.३०.५ – यज्ञशिष्टामृतभुजो
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३० श्लोक यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । पद पदार्थ यज्ञ शिष्टामृत भुज: – जो केवल यज्ञ के अवशेष खाते हैंसनातनम् – प्राचीनब्रह्म – आत्मा (स्वयं) का वास्तविक स्वरूप जिसमें आत्मा के रूप में ब्रह्म हैयान्ति – प्राप्त करना/एहसास करना सरल … Read more