४.३०.५ – यज्ञशिष्टामृतभुजो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३० श्लोक यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । पद पदार्थ यज्ञ शिष्टामृत भुज: – जो केवल यज्ञ के अवशेष खाते हैंसनातनम् – प्राचीनब्रह्म – आत्मा (स्वयं) का वास्तविक स्वरूप जिसमें आत्मा के रूप में ब्रह्म हैयान्ति – प्राप्त करना/एहसास करना सरल … Read more

४.३० – सर्वेऽप्येते यज्ञविदो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २९ श्लोक सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥ पद पदार्थ एते सर्वे अपि – ये सभी कर्म योगी जो दैव  यज्ञ से लेकर प्राणायाम तक उपर्युक्त गतिविधियों में लगे हुए हैंयज्ञ विदा: – वे लोग जो नित्य नैमित्तिक कर्म (दैनिक और विशिष्ट … Read more

४.२९ – अपाने जुह्वति प्राणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २८ श्लोक अपाने जुह्वति प्राणं  प्राणेSपानं  तथापरे ।प्राणापान गती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥ अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति । पद पदार्थ प्राणायामपरायणाः – जो लोग प्राणायाम पर ध्यान केंद्रित हैंनियताहाराः – नियमित भोजन आदतों के साथअपरे – कुछ कर्मयोगीअपाने प्राणं जुह्वति – … Read more

४.२८ – द्रव्यज्ञास् तपोयज्ञा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २७ श्लोक द्रव्यज्ञास्तपोयज्ञा  योगयज्ञास्तथापरे ।स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥ पद पदार्थ यतय: – वे यति  (जो प्रयास करते हैं)संशितव्रताः – और दृढ़ संकल्प  के साथअपरे – कुछ कर्मयोगीद्रव्य यज्ञा: – धार्मिक तरीकों से अर्जित धन से दान के यज्ञ में व्यस्त रहते … Read more

४.२७ – सर्वाणीन्द्रियकर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २६ श्लोक सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥ पद पदार्थ अपरे – कुछ अन्य कर्मयोगीज्ञान दीपिते – ज्ञान द्वारा जलाए गए दीपक सेआत्म संयम योगग्नौ – मन पर नियंत्रण की अग्नि में, जो एक योग साधन है (योग का … Read more

४.२६ – शब्दादीन् विषयान् अन्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २५.५ श्लोक शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥ पद पदार्थ अन्ये – फिर कोई कर्मयोगीशब्दादीन् विषयान् – ध्वनि जैसी इंद्रिय-विषयइंद्रिय अग्निषु – इंद्रिय अंगों की अग्नि मेंजुह्वति – यज्ञ में संलग्न हों सरल अनुवाद फिर कोई कर्म योगी इंद्रिय विषयों जैसे ध्वनि … Read more

४.२५.५ – श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २५ श्लोक श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये  सम्यमाग्निषु जुह्वति । पद पदार्थ अन्ये – कुछ अन्य कर्मयोगीश्रोत्रादीनी इन्द्रियाणि – कान जैसी संवेदी  अंगसम्यमाग्निषु – इंद्रियों को नियंत्रित करने की अग्नि मेंजुह्वति – उन्हें यज्ञ में संलग्न करना सरल अनुवाद कुछ अन्य कर्म योगी … Read more

४.२५ – ब्रह्माग्नावपरे यज्ञम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २४.५ श्लोक ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ||  पद पदार्थ अपरे – अन्य कर्मयोगीब्रह्मग्नौ – ब्रह्म की अग्नि मेंयज्ञम् – हविस (प्रसाद) जो यज्ञ का उपकरण हैयज्ञेन – यज्ञ में प्रयुक्त सामग्री के साथउप जुह्वति एव – ऐसे यज्ञ करने मे पूरी … Read more

४.२४.५ – दैवम् एवापरे यज्ञम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २४ श्लोक दैवमेवापरे यज्ञं  योगिनः पर्युपासते । पद पदार्थ अपरे योगिन: – कुछ अन्य कर्म योगीदैवम् – देवताओं की पूजा करनायज्ञं एव – केवल यज्ञ पर्युपासते – विशेष रूप से लगे हुए हैं सरल अनुवाद कुछ अन्य कर्म योगी विशेष रूप … Read more

४.२४ – ब्रह्मार्पणम् ब्रह्म हविर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २३ श्लोक ब्रह्मार्पणं  ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं  ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ पद पदार्थ ब्रह्मार्पणम् – यज्ञ में अर्पित किये जाने वाले सामग्रियां  जो ब्रह्म (सर्वोच्च भगवान) के रूप हैं ब्रह्म हवि:- वह आहुति  जो ब्रह्म का स्वरूप हैब्रह्मणा – यज्ञ का … Read more