९.२ – राजविद्या राजगुह्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ << अध्याय ९ श्लोक १ श्लोक राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् |प्रत्यक्षावगमं  धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् || पद पदार्थ इदम् – यह भक्ति योगराज विद्या – विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ (ज्ञान/मार्ग)राज गुह्यम् – रहस्यों में सर्वश्रेष्ठउत्तमं पवित्रं – पापों को दूर करने वालों में सर्वश्रेष्ठप्रत्यक्षावगमं – वह जो … Read more

९.१ – इदं तु ते गुह्यतमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ९ श्लोक श्री भगवान उवाचइदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे |ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेयत् ज्ञात्वा – जिसे जानकरअशुभात् मोक्ष्यसे – सभी पुण्य/पाप (गुण/अवगुण) से मुक्ति (जो तुम्हे मुझे प्राप्त करने से रोकते हैं)इदं गुह्य तमं ज्ञानं … Read more

अध्याय ९ – राजविद्या राजगुह्य योग या राजकीय  बुद्धि और राजकीय रहस्य की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ८ कृष्ण के मुख में विश्व भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >>अध्याय १० आधार – http://githa.koyil.org/index.php/9/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

८.२८ – वेदेषु यज्ञेषु तपस्सु चैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २७ श्लोक वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् |अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् || पद पदार्थ वेदेषु – वेदों का पाठ करनायज्ञेषु – यज्ञ (बलि)तपस्सु च – और विभिन्न प्रकार के तप (तपस्या)दाने च एव – और … Read more

८.२७ – नैते सृती पार्थ जानन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २६ श्लोक नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन | तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन  ||  पद पदार्थ पार्थ अर्जुन – हे कुंती पुत्र अर्जुन!एते सृती – ये दोनों,अर्चिरादि और धूमादि मार्गों कोजानन् – जानता हैकश्चन योगी – कोई भी ज्ञानीन मुह्यति – कभी भी … Read more

८.२६ – शुक्लकृष्णे गती ह्येते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २५ श्लोक शुक्लकृष्णे गती  ह्येते  जगत: शाश्वते मते | एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुन : || पद पदार्थ एते शुक्ल कृष्णे गती – ये दो मार्ग अर्थात् अर्चिरादि गती और धूमादि गतीजगत: – (क्रमशः) ज्ञानियों और पुण्यात्माओं के लिएशाश्वते मते – स्थायी रूप … Read more

८.२५ – धूमो रात्रिस् तथा कृष्ण:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २४ श्लोक धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् |तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते || पद पदार्थ धूम:- धुआँरात्रि – राततथा कृष्ण: – उसी तरह, कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा के बाद शुरू होने वाला अंधेरा पक्ष )दक्षिणायनं षण्मासा: – दक्षिणायनम् के छह महीने … Read more

८.२४ – अग्नि: ज्योति: अह: शुक्ल:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २३ श्लोक अग्निर्ज्योतिरह : शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् | तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना : ||  पद पदार्थ अग्निर्ज्योति: – अर्चिस (प्रकाश की किरण)अह:-अहस (दिन)शुक्ल:- शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल पक्ष जो अमावस्या के बाद शुरू होता है)उत्तरायणं षण्मासा: – उत्तरायणम् के छह … Read more

८.२३ – यत्र काले त्वनावृत्तिम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २२ श्लोक यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: | प्रयाता यान्ति तं  कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ||  पद पदार्थ भरतर्षभ! – हे भरत वंश के वंशज!यत्र काले प्रयाता: योगिन: तु – योगी जो विभिन्न साधन अपनाते हैंआवृत्तिं अनावृत्तिं च – संसार मंडल [भौतिक … Read more

८.२२ – पुरुषः स परः पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २१ श्लोक पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया  | यास्यन्त:स्थानि  भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ||  पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!भूतानि – सभी वस्तुएँयस्य – जिस परमपुरुष केअन्तःस्थानि – अन्दर उपस्थितयेन – जिसके द्वारासर्वम् इदं – ये सबततम् – व्याप्तस: पर: … Read more