१८.४२ – शमो दम: तप: शौचं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४१ श्लोक शमो दमस्तप : शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च  ​​|ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् || पद पदार्थ शम:- बाह्य इन्द्रियों पर नियंत्रणदम:- मन को नियंत्रित करनातप:-शास्त्र में बताए अनुसार शरीर से तपस्या करनाशौचं – शास्त्र में निर्धारित गतिविधियों में संलग्न होने की … Read more

१८.४१ – ब्राह्मणक्षत्रियविशाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४० श्लोक ब्राह्मणक्षत्रियविशां  शूद्राणां  च परन्तप |कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः || पद पदार्थ परन्तप – हे शत्रुओं को सताने वाला!ब्राह्मण क्षत्रिय विशां – ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों केशूद्राणां च – और शूद्रों केस्वभावप्रभवै: गुणै: – उनमें से प्रत्येक के लिए गुण … Read more

१८.४० – न तत् अस्ति पृथिव्यां वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३९ श्लोक न तदस्ति पृथिव्यां  वा दिवि देवेषु वा पुन: |सत्त्वं  प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिस्स्यात् त्रिभिर्गुणै: || पद पदार्थ पृथिव्यां वा – इस पृथ्वी पर मनुष्यों दिवि देवेषु वा पुन: – स्वर्ग में देवताओं एभि: त्रिभि: प्रकृतिजै: गुणै: मुक्तं – इन  तीन भौतिकवादी  गुणों … Read more

१७.१४ – देवद्विजगुरुप्राज्ञ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १३ श्लोक देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचम् आर्जवम् |ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरं तप उच्यते || पद पदार्थ देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनं – देवताओं , द्विजों(ब्राह्मणों), गुरु, विद्वानों की पूजा करनाशौचम्- ऐसे कार्य जो पवित्रता की ओर ले जाते हैं (जैसे पवित्र नदियों … Read more

१७.१३ – विधिहीनम् असृष्टान्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १२ श्लोक विधिहीनम् असृष्टान्नं  मन्त्रहीनम् अदक्षिणम् |श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते || पद पदार्थ विधिहीनम् – (ब्राह्मणों की) अनुमति से रहितअसृष्टान्नं – अधर्म से अर्जित सामग्री से युक्तमंत्रहीनम् – उचित मंत्रों से रहितअदक्षिणम् – दक्षिणा से (ब्राह्मण आदि को) रहित श्रद्धा … Read more

१७.१२ – अभिसन्धाय तु फलम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ११ श्लोक अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थं अपि चैव य: |इज्यते भरतश्रेष्ठ तं  यज्ञं विद्धि राजसम् || पद पदार्थ भरत श्रेष्ठ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!फलम् अभिसन्धाय तु – भौतिक लाभ की इच्छा सेदम्भार्थं अपि च एव – केवल दिखावे … Read more

१७.११ – अफलाकाङ्क्षिभिर् यज्ञो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १० श्लोक अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |यष्टव्यमेवेति मन: समाधाय स सात्त्विक: || पद पदार्थ अफलाकाङ्क्षिभि: – उन लोगों द्वारा जिन्हें परिणाम की कोई अपेक्षा नहीं हैविधिदृष्ट: – जैसे शास्त्र द्वारा निर्धारित हैयष्टव्यमेव इति – यह सोचकर कि यज्ञ अवश्य करना … Read more

१७.१० – यातयामं गतरसं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ९ श्लोक यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |उच्छिष्टमपि  चामेध्यं  भोजनं तामसप्रियम् || पद पदार्थ यात यामं – बासीगत रसं – प्राकृतिक स्वाद खो चुकापूति – बदबूदारपर्युषितं च – लंबे समय तक रखे रहने के कारण स्वाद बदल जानाउच्छिष्टम् – … Read more

१७.९ – कट्वमललवणात्युष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ८ श्लोक कट्वमललवणात्युष्ण  तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: |आहारा  राजसस्येष्टा   दु:खशोकामयप्रदा: || पद पदार्थ कट्वमल लवण अति उष्ण तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: – अधिक कड़वा, खट्टा, नमकीन, अति गरम, तीखा, सूखा और जलन वालेअहारा:- खाद्य पदार्थराजसस्य इष्टा: – उन लोगों को प्रिय है जिनके … Read more

१७.८ – आयु: सत्व बलारोग्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ७ श्लोक आयुस्सत्व  बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: |रस्या: स्निग्धा: स्थिरा  हृद्या आहारास्सात्विकप्रिया: || पद पदार्थ आयु: सत्व बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: – जीवन, ज्ञान, शक्ति, स्वास्थ्य, सुख और आनंद का पोषणरस्या: – मिठास से भरेस्निग्धा:- चिकनापन से युक्त स्थिरा: – स्थायी भलाई की ओर … Read more