८.१५ – माम् उपेत्य पुनर्जन्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १४ श्लोक मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् |नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: || पद पदार्थ परमां संसिद्धिं गता: – जिन्होंने मुझे, परम लक्ष्य के रूप में प्राप्त कर लियामहात्मान: – ज्ञानी, जो महान आत्माएं हैंमां – मुझेउपेत्य – प्राप्त करने के बाददु:खालयम् … Read more

७.१५ – न मां दुष्कृतिनो मूढा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १४ श्लोक न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपध्यन्ते नराधमा : |माययाऽपह्रतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता : || पद पदार्थ मूढा: – मूर्खनराधमा: – मनुष्यों में सबसे निम्नमायया अपहृत ज्ञान: – जिनके पास (अतार्किक तर्क आदि) माया द्वारा नष्ट किया गया ज्ञानआसुरं भावं आश्रिता: … Read more

७.१४ – मामेव ये प्रपध्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक मामेव ये प्रपध्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||  पद पदार्थ ये – वोमां एव – केवल मेरे प्रपध्यन्ते – समर्पणते – वेएतां मायां – यह भौतिक प्रकृति/क्षेत्रतरन्ति – पार करना सरल अनुवाद जो लोग केवल मेरे प्रति समर्पण करते … Read more

७.१३.५ – दैवी ह्येषा गुणमयी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | पद पदार्थ मम – मेराएषा – यहगुणमयि – तीन गुणों से भरपूरमाया – भौतिक प्रकृति/क्षेत्रदैवी – क्योंकि मेरे द्वारा बनाया गया है जो देव (भगवान) हैदुरत्यया – पार करना कठिन है … Read more

७.१३ – त्रिभि: गुणमयै: भावै:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १२ श्लोक त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् |मोहितं नाभिजानाती मामेभ्य : परमव्ययम्  || पद पदार्थ सर्वं इदं जगत् – इस संसार में सभी जीवात्माएँएभि: त्रिभि: गुणमयै: भावै: – इन तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त वस्तुओं द्वारामोहितं – भ्रमितएभ्य: परं – … Read more

७.१२ – ये चैव सात्विका  भावा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ११ श्लोक ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये |मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि || पद पदार्थ ये च एव सात्विका: भावा: – इस दुनिया में वे सत्ताएं जिनमें सत्वगुण प्रचुर मात्रा में है।ये च (एव) राजस: तमसा: … Read more

७.११ – बलं बलवतां चाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १० श्लोक बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् |धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ || पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!अहम् – मैंबलवतां – बलवान काकाम राग विवर्जितं बलम् (अस्मि) – वह शक्ति हूँ जो उन्हें वासना से दूर रखती हैभूतेषु … Read more

७.१० – भीजं मां सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ९ श्लोक भीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् |बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!सर्व भूतानाम् – उन सभी सत्ताओं में जो परिवर्तन से गुजरती हैंसनातनं बीजं माम् विद्धि – मुझे उस शाश्वत क्षमता के रूप में जानो … Read more

७.९ – पुण्यो गन्धः पृथिव्यां  च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ८ श्लोक पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ |जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु || पद पदार्थ पृथिव्यां च – पृथ्वी मेंपुण्य: गंध: (अस्मि) – मैं सुवास हूँविभावसौ – अग्नि मेंतेज : अस्मि – मैं प्रकाश हूँसर्व भूतेषु – सभी प्राणियों मेंजीवनं … Read more

७.८ – रसोऽहम् अप्सु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ७ श्लोक रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभाऽस्मि शशिसूर्ययोः ।प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!अहं – मैंअप्सु – पानी मेंरस: (अस्मि) – अच्छा स्वाद हूँशशिसूर्ययो:- चन्द्रमा और सूर्य काप्रभाऽस्मि – मैं तेज हूँसर्व वेदेषु – … Read more