१८.७ – नियतस्य तु संन्यासः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६ श्लोक नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते।मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः।। पद पदार्थ नियतस्य कर्मण: – नित्य (दैनिक), नैमित्तिक (आवधिक) आदि कर्मों कासंन्यासः तु – परित्यागन उपपद्यते – उचित नहीं हैमोहात् – भ्रम (यह सोचकर कि कर्म दोषपूर्ण है) के कारणतस्य – … Read more

१८.६ – एतान्यपि तु कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५ श्लोक एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!एतानि कर्माणि अपितु – इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन))सङ्गं – “मेरा” का विचारफलानि च – परिणाम की इच्छात्यक्त्वा – छोड़करकर्तव्यानी – (मुमुक्षुओं … Read more

१८.५ – यज्ञदानतपः कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४ श्लोक यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।। पद पदार्थ यज्ञ दान तपः कर्म – यज्ञ, दान, तप जैसे वैधिक कर्मोंन त्याज्यं – (मुमुक्षुओं द्वारा) छोड़ा नहीं जा सकतातत् – उन कर्मों कोकार्यमेव – (अंत तक) करना … Read more

१८.४ – निश्चयं श्रृणु मे तत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३ श्लोक निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।। पद पदार्थ भरत सत्तम – हे भरत के वंशजों में श्रेष्ठ!तत्र त्यागे – इस त्याग के विषय में जिसे भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से देखते हैंनिश्चयं – सत्यमे … Read more

१८.३ – त्याज्यं दोषवदित्येके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २ श्लोक त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः।यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।। पद पदार्थ एके मनीषिणः – कुछ विद्वानोंदोषवत् कर्म – यज्ञ जैसे कर्म, जो दोषों से युक्त होते हैंत्याज्यं – (मुमुक्षुओं (मुक्ति चाहने वालों) द्वारा) छोड़े जा सकते हैंइति प्राहु: – ने … Read more

१८.२ – काम्यानां कर्मणां न्यासम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १ श्लोक श्री भगवानुवाच काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण ने कहाकवय: – (कुछ) विद्वान लोगकाम्यानां कर्मणां – निश्चित फल की आशा से किये गये काम्य कर्मों कान्यासं – पूर्ण … Read more

१८.१ – संन्यासस्य महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १७ श्लोक २८ श्लोक अर्जुन उवाच संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहामहाबाहो – हे महाबाहो!हृषीकेश – हे इन्द्रियों को वश में करने वाले!केशिनिषूदन – हे केशी नामक राक्षस के संहारक!संन्यासस्य – संन्यास (त्यजन, … Read more

अध्याय १८ – मोक्षोपदेश योग या मोक्ष की शिक्षा की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १७ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 18 (மோக்ஷோபதேச யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 17 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் இருபத்திரண்டாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் பதினெட்டாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “இறுதியில், அதாவது, பதினெட்டாம் அத்தியாயத்தில் – அனைத்து செயல்களும் பகவானால் செய்யப்படுகின்றன, ஸத்வ குணம் பின்பற்றப்பட வேண்டும் மற்றும் அத்தகைய அமைதியான செயல்களின் விளைவாக மோக்ஷத்தைப் பெற வேண்டும் என்று கூறப்பட்டுள்ளன. இந்த கீதா சாஸ்த்ரத்தின் ஸாரமான பக்தி மற்றும் ப்ரபத்தியும் … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 18 (mOkshOpadhESa yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 17 In the twenty second SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of eighteenth chapter saying “At the end, i.e., eighteenth chapter – it is spoken that [all] activities are done by bhagavAn himself, sathva guNam (quality … Read more