१८.५९ – यद्यहङ्कारम् आश्रित्य
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५८ श्लोक यद्यहङ्कारम् आश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे |मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति || पद पदार्थ अहङ्कारम् आश्रित्य – यह मानते हुए कि “मैं स्वयं अच्छे और बुरे का निर्णय कर सकता हूँ” (मेरे आदेश का उल्लंघन करके)न योत्स्य इति – … Read more