१८.१२ – अनिष्टमिष्टं मिश्रं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ११ श्लोक अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्।भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित्।। पद पदार्थ अनिष्टं – नरक आदि जो दुःख देते हैं (कर्म करने वाले को)इष्टं – स्वर्ग आदि जो आनंद देते हैं (कर्म करने वाले को)मिश्रं च – … Read more

१८.११ – न हि देहभृता शक्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक १० श्लोक न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते।। पद पदार्थ देह भृता – शरीर को धारण करने वाली आत्मा द्वाराकर्माणि – कर्मोंअशेषतः त्यक्तुं – पूर्णतः त्याग करनान हि शक्यं – क्या संभव है?य: – वहकर्म फल त्यागी … Read more

१८.१० – न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ९ श्लोक न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते।त्यागी सत्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।। पद पदार्थ सत्व समाविष्ट: – जैसे कि पहले कहा गया है, सत्वगुण में स्थितमेधावी – (उसी कारण) सत्य का सच्चा ज्ञान के साथछिन्नसंशयः – (उसी कारण) समस्त संशय से मुक्तत्यागी … Read more

१८.९ – कार्यम् इत्येव यत् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ८ श्लोक कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्विको मतः।। पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!नियतं कर्म – नित्य, नैमित्तिक कर्मों कोसङ्गं फलं चैव त्यक्त्वा – ‘यह मेरा कर्म है’ और कर्म के फल की आसक्ति को … Read more

१८.८ – दुःखम् इत्येव यत् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७ श्लोक दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात् त्यजेत्।स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्।। पद पदार्थ काय क्लेश भयात् – शरीर को होने वाले कष्ट के भय सेदुःखम् इति एव – दुःखदायी होने के कारणकर्म – नित्य कर्म (दैनिक अनुष्ठान), नैमित्तिक कर्म … Read more

१८.७ – नियतस्य तु संन्यासः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६ श्लोक नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते।मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः।। पद पदार्थ नियतस्य कर्मण: – नित्य (दैनिक), नैमित्तिक (आवधिक) आदि कर्मों कासंन्यासः तु – परित्यागन उपपद्यते – उचित नहीं हैमोहात् – भ्रम (यह सोचकर कि कर्म दोषपूर्ण है) के कारणतस्य – … Read more

१८.६ – एतान्यपि तु कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५ श्लोक एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम्।। पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!एतानि कर्माणि अपितु – इन कर्मों (जैसे उपासना (साधन))सङ्गं – “मेरा” का विचारफलानि च – परिणाम की इच्छात्यक्त्वा – छोड़करकर्तव्यानी – (मुमुक्षुओं … Read more

१८.५ – यज्ञदानतपः कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ४ श्लोक यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।। पद पदार्थ यज्ञ दान तपः कर्म – यज्ञ, दान, तप जैसे वैधिक कर्मोंन त्याज्यं – (मुमुक्षुओं द्वारा) छोड़ा नहीं जा सकतातत् – उन कर्मों कोकार्यमेव – (अंत तक) करना … Read more

१८.४ – निश्चयं श्रृणु मे तत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ३ श्लोक निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।। पद पदार्थ भरत सत्तम – हे भरत के वंशजों में श्रेष्ठ!तत्र त्यागे – इस त्याग के विषय में जिसे भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से देखते हैंनिश्चयं – सत्यमे … Read more

१८.३ – त्याज्यं दोषवदित्येके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक २ श्लोक त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः।यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।। पद पदार्थ एके मनीषिणः – कुछ विद्वानोंदोषवत् कर्म – यज्ञ जैसे कर्म, जो दोषों से युक्त होते हैंत्याज्यं – (मुमुक्षुओं (मुक्ति चाहने वालों) द्वारा) छोड़े जा सकते हैंइति प्राहु: – ने … Read more