६.१० – योगी युञ्जीत सततम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ९ श्लोक योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: |एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: || पद पदार्थ योगी – ( पहले बताया गया ) कर्म योगीसततं – हर दिन, योग अभ्यास के लिए विशिष्ट समय निर्धारितरहसि स्थित: – एकांत स्थान पर रहकरएकाकी – और … Read more

६.९ – सुहृन्मित्रार्युदासीन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ८ श्लोक सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु |साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते || पद पदार्थ सुहृन् मित्र अरि उदासीन मध्यस्थ द्वेष्य बन्धुषु – शुभचिंतक , मित्र , शत्रु , असंबद्ध व्यक्ति, तटस्थ व्यक्ति , जिनके अंदर स्वाभाविक घृणा है , जिनके अंदर स्वाभाविक स्नेह है, … Read more

६.८ – ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ७ श्लोक ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: |युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: || पद पदार्थ ज्ञान विज्ञान तृप्तात्मा – ज्ञान और महा ज्ञान से तृप्त मन के साथकूटस्थ: – शुद्ध आत्मा पर दृढ़ता से स्थापितविजितेन्द्रिय: – ज्ञानेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करकेसम लोष्टाश्म काञ्चन: … Read more

६.७ – जितात्मनः प्रशान्तस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ६ श्लोक जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानावमानयोः ॥ पद पदार्थ शीतोष्ण सुख दुःखेषु – ठंड-गर्मी ; सुख-दुःख मेंतथा – उसी तरहमान अवमानयोः – और सम्मान अपमान मेंजितात्मनः – अप्रभावित मन के साथप्रशान्तस्य – (उसके मन में ) जिसका ज्ञानेन्द्रियों … Read more

६.६ – बन्धुरात्मात्मनस्तस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ५ श्लोक बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् ॥ पद पदार्थ येन – जिसके द्वाराआत्मा – उसका मनआत्मन एव – उसके द्वाराजितः – जीत लिया गया हो ( लौकिक अभिलाषाओं में बिना संलग्न )तस्य आत्मन – ऐसे व्यक्ति … Read more

६.५ – उद्धरेत् आत्मनात्मानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४ श्लोक उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ पद पदार्थ आत्मना – मन ( जो सांसारिक सुखों से विरक्त हो ) के साथआत्मानं – स्वयंउद्धरेता – उन्नति करें[ आत्मना – मन जो सांसारिक सुखों से जुड़ा हो ] आत्मानं … Read more

६.४ – यदा हि नेन्द्रियार्थेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३ श्लोक यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥ पद पदार्थ ( अयं योगी ) – यह कर्म योगी निष्ट ( अभ्यासी )इंन्द्रियार्थेषु – ध्वनि जैसे इन्द्रिय वस्तुओं जिन्हे ज्ञानेंद्रियों से आनंद लिया जा सकता हैयदा – जबन अनुषज्जते … Read more

६.३ – आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २ श्लोक आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते ।योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते ॥ पद पदार्थ योगं – आत्म साक्षात्कार ( आत्म दृष्टि )आरुरुक्ष: – जो प्राप्त करना चाहता हैमुने: – उस मुमुक्षु के लिए जो आत्म तपस्या में संलग्न हैकर्म – कर्म योगकारणम् … Read more

६.२ – यं संन्यासम् इति प्राहु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १ श्लोक यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥ पद पदार्थ पाण्डव – हे पाण्डु पुत्र !यं – जिसेसंन्यास: इति – ज्ञानप्राहु: – ( ज्ञानी) कहते हैंतं – वोयोगं विद्धि – जानो कि वह कर्म … Read more

६.१ – अनाश्रितः कर्मफलं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ५ श्लोक २९ श्लोक श्री भगवानुवाच –अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥ पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण कहते हैंकर्म फलं – कर्म के परिणाम जैसे स्वर्ग इत्यादिअनाश्रितः – पकडे बिनाकार्यं … Read more