४.३२ – एवं बहुविधा यज्ञा
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३१ श्लोक एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।कर्मजान्विध्दि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ पद पदार्थ एवं – इस प्रकारबहुविधा: – अनेक प्रकार केयज्ञा: – कर्मयोगब्रह्मण: मुखे – कर्म योग में जो आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का एक साधन हैवितता:- उपस्थित हैंतान् … Read more