११.३४ – द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योध (वीरान् ) मुख्यान्।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा: युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।

पद पदार्थ

द्रोणं च – द्रोण
भीष्मं च – और भीष्म
जयद्रथं च – और जद्रथ
कर्णं (च) – और कर्ण
तथा – उसी प्रकार
अन्यान् योध मुख्यान् अपि – अन्य समान योद्धा नेताओं
मया – मेरे द्वारा
हतान् – जो (पहले से ही) मारे जाने के लिए कृतसंकल्प हैं
त्वं – तुम
जहि – मार डालो
मा व्यथिष्ठा: – शोक मत करो (अनुचित करुणा और प्रेम के कारण यह सोचकर कि “मैं उन्हें कैसे मार सकता हूँ?”)
युध्यस्व – (बिना किसी संदेह के) लड़ो
रणे – युद्धभूमि में
सपत्नान् – शत्रुओं
जेतासि – विजय प्राप्त करो

सरल अनुवाद

तुम उन सभी द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण और अन्य समान योद्धा नेताओं को मार डालो जो (पहले से ही) मेरे द्वारा मारे जाने के लिए कृतसंकल्प हैं; (अनुचित करुणा और प्रेम के कारण यह सोचकर कि “मैं उन्हें कैसे मार सकता हूँ?”) शोक मत करो; युद्धभूमि में (बिना किसी संदेह के) लड़ो और अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करो।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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