११.१४ – तत: स विस्मयाविष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा  धनञ्जय: |
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत  ||

पद पदार्थ

तत :- तत्पश्चात्
स: धनञ्जय: – वह अर्जुन
विस्मयाविष्ठ: – विस्मय से भर जाना (जैसा कि पिछले श्लोकों में बताया गया कृष्ण के दिव्य रूप में सब कुछ देखने के कारण )
हृष्टरोमा- रोंगटे खड़े हो जाते हैं
देवम् – कृष्ण (जिन्होंने विश्वरूप को प्रकट किया)
शिरसा प्रणम्य – सिर झुकाकर
कृताञ्जलि: – हथेलियाँ जोड़कर प्रणाम कर
अभाशत – इस प्रकार बोला

सरल अनुवाद

तत्पश्चात्, वह अर्जुन, विस्मय से भरा हुआ (जैसा कि पिछले श्लोकों में बताया गया कृष्ण के दिव्य रूप में सब कुछ देखने के कारण ), रोंगटे खड़े होकर, अपना सिर झुकाकर , हथेलियाँ जोड़कर कृष्ण को नमस्कार किया,और इस प्रकार बोला।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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