११.२९ – यथा प्रदीप्त ज्वलनं पतङ्गा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

यथा प्रदीप्त ज्वलनं पतङ्गा: विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका: तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।

पद पदार्थ

समृद्धवेगाः – तीव्र गति से
पतङ्गा: – पतंगे
प्रदीप्त ज्वलनं – धधकती आग में
यथा नाशाय विशन्ति – जिस प्रकार प्रवेश करते हैं
तथैव – उसी प्रकार
समृद्ध वेगाः लोका: अपि – योद्धा तीव्र गति से
तव – तुम्हारे
अभिज्वलन्ति वक्त्राणि – धधकते मुखों में
नाशाय विशन्ति – प्रवेश करते हैं

सरल अनुवाद

जिस प्रकार पतंगे मरने के लिए तीव्र गति से धधकती आग में प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार योद्धा मरने के लिए तुम्हारे धधकते मुखों में तीव्र गति से प्रवेश करते हैं।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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