१५.१.५ – अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

.<< अध्याय १५ श्लोक १

श्लोक

अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: |

पद पदार्थ

तस्य – उस वृक्ष की
शाखा:- (कुछ और) शाखाएँ
गुणप्रवृद्धा: – सत्व, रजस ,तमस जैसे गुणों से पोषित
विषयप्रवाला: – अंकुरित होना शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं से
अधश्च च उर्ध्वं च प्रसृता: – नीचे भी और ऊपर भी फैल रहें हैं

सरल अनुवाद

उस वृक्ष की (कुछ और) शाखाएँ सत्व, रजस और तमस जैसे गुणों से पोषित, शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं से अंकुरित, नीचे भी और ऊपर भी फैल रहें हैं ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १५ श्लोक २

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/15-1-5/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org