२.२४ – अच्छेद्योऽयम् अदाह्योऽयम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक २३

श्लोक

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥

पद पदार्थ

अयं – यह आत्मा
अच्छेद्य: – काटा नहीं जा सकता
अयं – यह आत्मा
अदाह्य: (च ) – जलाया नहीं जा सकता
अक्लेद्य: (च ) – घुलाया नहीं जा सकता
अशोष्य एव (च) – सूखा नहीं जा सकता
अयं – यह आत्मा
सर्वगतः – सभी अचेतन (अचित) वस्तुओं में व्यापित है
नित्यः – नित्य है ( उस कारण से )
स्थाणु: – दृढ़ से स्थापित है
अचल: – निश्चल है
सनातनः – प्राचीन है

सरल अनुवाद

यह आत्मा काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, घुलाया नहीं जा सकता, सूखा नहीं जा सकता ; यह आत्मा सभी अचेतन (अचित) वस्तुओं में व्यापित है, नित्य है ,दृढ़ से स्थापित है, निश्चल और प्राचीन है|

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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