२.२७ – जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक २६

श्लोक

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुम् अर्हसि ॥

पद पदार्थ

जातस्यं – वो जो जन्म लेता है
मृत्यु: – मौत
ध्रुव: – अनिवार्य है
मृतस्य – वो जो मरता है
जन्म च – पुनर्जन्म
ध्रुव: – अनिवार्य है
तस्मात् – इसलिए
अपरिहारे अर्थे – इस अनिवार्य विषय पर
त्वं – तुम
शोचितुं – दुःखित होने का
न अर्हसि – कोई कारण नहीं है

सरल अनुवाद

वो जो जन्म लेता है, उसके लिए मौत अनिवार्य है और वो जो मरता है, उसके लिए पुनर्जन्म अनिवार्य है | इसलिए इस अनिवार्य विषय पर तुम दुःखित होने का कोई कारण नहीं है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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