२.३० – देही नित्यमवध्योऽयं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक २९

श्लोक

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥

पद पदार्थ

सर्वस्य – सभी आकारों में उपस्थित, जैसे देव , मनुष्य इत्यादि
देहे – देहों का
( वध्यमाने सत्यपि – हत्या होने पर भी )
अयं देही – यह आत्मा जो देह में निवास करता है
नित्य – नित्य
अवध्य: – अविनाशी
भारत – हे भारतवंशी !
तस्मात् – उपर्युक्त कारणों से
सर्वाणि भूतानि ( प्रति ) – इन वस्तुओं के प्रति
त्वं – तुम
शोचितुं – दुःखित होने का
न अर्हसि – कोई कारण नहीं है

सरल अनुवाद

हे भारतवंशी ! सभी आकारों में उपस्थित सारे देहों , जैसे देव , मनुष्य इत्यादि, का हत्या होने पर भी, यह आत्मा, जो देह में निवास करता है, नित्य और अविनाशी है | उपर्युक्त कारणों से तुम किसी भी वस्तु के प्रति दुःखित होने का कोई कारण नहीं है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>>अध्याय २ श्लोक ३१

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