२.४५ – त्रैगुण्य विषया वेदा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक
त्रैगुण्य विषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ||

पदपदार्थ

वेद: – वेद
त्रैगुण्य विषया – तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस ) वाले लोगों की भलाई के लिए कहता है
अर्जुन – हे अर्जुन!
(त्वम तु  – लेकिन तुम )
निस्त्रैगुण्य भव – इन तीनों गुणों से मुक्त हो जाओ
निर्द्वन्द्व:  (भव) – ( सुख/दुःख आदि) द्वैत से मुक्त हो जाओ
नित्य सत्वस्थ: (भव) – हर रोज बढ़ती अच्छाई के साथ हो
निर्योगक्षेम: (भव) – चीजों को प्राप्त करने की क्षमता (योग) और प्राप्त की गई चीजों की रक्षा के प्रति (क्षेम) उदासीन हो जाओ 
आत्मावान् –  पूरी तरह से स्वयं (आत्मा) में व्यस्त हो जाओ |

सरल अनुवाद
हे अर्जुन! वेद तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस ) वाले लोगों की भलाई के लिए कहता है । लेकिन तुम उन तीन गुणों से मुक्त हो जाओ ।  द्वैत (जैसे सुख/दुःख आदि) से मुक्त हो जाओ , हर दिन बढ़ती अच्छाई के साथ रहो,  चीजों को प्राप्त करने की क्षमता (योग) और प्राप्त की गई चीजों की रक्षा करने (क्षेम) ,से बेपरवाह होकर एक ऐसा व्यक्ति बनो जो पूरी तरह से  स्वयं (आत्मा) में व्यस्त हो जाता  है | 

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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