२.६३ – क्रोधाद्भवति सम्मोहः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक

क्रोधाद्भवति सम्मोहः  सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद्  बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ॥

पद पदार्थ

क्रोधात् – उस क्रोध के कारण
सम्मोहः-  मन का भ्रम 
भवति– होती है
सम्मोहात् – उस भ्रम के कारण
स्मृतिविभ्रम: (भवति) – स्मृति की नाश होती है
स्मृतिभ्रंशाद् – स्मृतिनाश से
बुद्धिनाशा : (भवति) – बुद्धि का नाश
बुधिनाशात् – बुद्धि के नाश के कारण
प्रणश्यति – वह स्वयं नष्ट हो जाता है (इस संसार में डूब कर)

सरल अनुवाद

उस क्रोध के कारण मन भ्रमित होता है; मनोभ्रंश के कारण स्मृति नष्ट  होती है; स्मृति के नाश  के कारण बुद्धि का नाश होता है; बुद्धि के नाश के कारण, वह  स्वयं ,(इस संसार  में डूब कर) नष्ट हो जाता है ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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