श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ध्यायतो विषयान्पुम्स: सङ्गस्तेषूपजायते ।
सङ्गात् संजायते कामः कामात् क्रोधोSभिजायते ॥
पद पदार्थ
विषयान् – इन्द्रिय वस्तुओं पर जो ध्वनि, स्पर्श, रूप , रस , गंध हैं
ध्यायता :- ध्यान करता है (इनके प्रति अनादिकाल से रुचि के कारण)
पुम्स:- व्यक्ति के लिए (जो मेरा ध्यान नहीं करता है)
तेषु – उन इन्द्रियविषयों में
संग:- लगाव
उपजायते– बढ़ता है
संगात् – उस लगाव के कारण
काम: – वासना (जिसे प्राप्त किये बिना , असहनीय बन जाता है )
संजायते – अधिक होता है
कामात् – उन अभिलाषाओं के कारण
क्रोध: – क्रोध
अभिजायते – अधिक होता है
सरल अनुवाद
वह व्यक्ति (जो मेरा ध्यान नहीं करता ) पर इंद्रिय वस्तुओं जैसे ध्वनि, स्पर्श , रूप , रस , गंध (इनके प्रति अनादि काल से रुचि के कारण) में ध्यान करता हैं, उन इंद्रिय वस्तुओं में उसका लगाव बढ़ता है; उस लगाव के कारण वासना ( जिसे प्राप्त किये बिना ,असहनीय बन जाता है) अधिक होता है; उन अभिलाषाओं के कारण क्रोध अधिक होता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/2-62/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org