श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥
पद पदार्थ
अयुक्तस्य – जिसका मन/हृदय मुझसे जुड़ा नहीं है
बुद्धि: – आत्म ज्ञान
न अस्ति – नहीं होगा ;
अयुक्तस्य – जिसके पास वह(आत्म) ज्ञान नहीं है
भावना – आत्मा पर ध्यान
न च (अस्थि) – घटित नहीं होता
अभावयत: – जिसे आत्म ध्यान नहीं है
शांतिः – सांसारिक सुखों में वैराग्य
न च (अस्थि) – नहीं होता
अशान्तस्य – जिसे सांसारिक सुखों में वैराग्य नहीं है
कुत : सुखम – वह परमानंद कैसे प्राप्त करेगा ?
सरल अनुवाद
जिसका चित्त मुझमें स्थिर नहीं होता, उसे आत्मज्ञान नहीं होता; जिसे वह (आत्म) ज्ञान नहीं है, उसे आत्म ध्यान घटित नहीं होता; जिसे आत्म ध्यान नहीं है , उसे सांसारिक सुखों में वैराग्य नहीं होता; जिसे सांसारिक सुखों में वैराग्य नहीं है, वह परमानंद कैसे प्राप्त करेगा ?
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