श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: ।
निर्ममो निरहंकार:स शान्तिमधिगच्छति ॥
पद पदार्थ
य: पुमान् – वह आदमी
सर्वान् कामान् – सभी सांसारिक सुख
विहाय – त्याग करके
नि:स्पृह:- इच्छा रहित होकर (उनमें)
निर्मम : – ममकार (अपनापन ) से रहित होकर
निरहंकारः – अहंकार से रहित होकर (आत्मा को शरीर के साथ भ्रमित करना)
चरति – जो जीवित है
स:- वह
शान्तिं अधिगच्छति – सांसारिक सुखों से मुक्त होने की शांति प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
वह मनुष्य जो ममकार (स्वामित्व) और अहंकार (आत्मा को शरीर के साथ भ्रमित करना) से रहित होकर, सभी सांसारिक सुखों को त्यागकर जीवन जीता है, उसे सांसारिक सुखों से मुक्त होने की शांति प्राप्त होती है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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