३.१० – सहयज्ञै: प्रजाः सृष्ट्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

<< अध्याय ३ श्लोक ९

श्लोक

 सहयज्ञै : प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोSस्त्विष्टकामधुक् ॥

पद पदार्थ

प्रजापति – परमात्मा जो सर्वेश्वर हैं
पुरा  – सृष्टि के आरंभ में
यज्ञै: सह – यज्ञ के साथ  ( उनके पूजा के संकल्प में )
प्रजा:- जीव
सृष्ट्वा – निर्मित
उवाच – कहा (इस प्रकार)
” अनेन – इन यज्ञों के द्वारा
प्रसविष्यध्वम् –  समृद्ध हो ( प्रचुर मात्रा में बढ़ना )
एष: – ये यज्ञ 
व: – तुम्हे 
इष्ट कामधुक् – मोक्ष और जो मोक्ष के लिए आवश्यक चीज़े प्रदान करे 
अस्तु – ऐसा हो “

सरल अनुवाद

सृष्टि के आरंभ में, सर्वेश्वर परमात्मा ने यज्ञ (उनके पूजा के संकल्प में ) से सभी प्राणियों की रचना की और कहा (इस प्रकार) , ” इन यज्ञों से समृद्ध हो ( प्रचुर मात्रा में बढ़ो ) और ऐसा हो कि यह यज्ञ तुम्हे मोक्ष और मोक्ष के लिए आवश्यक चीज़े प्रदान करे। “

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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