३.११ – देवान् भावयतानेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥

पद पदार्थ

अनेन  – इस यज्ञ से
देवता – ये देवतावों का (जो मुझे अपने अन्तर्यामी के रूप में मानते हैं)
भावयता  – पूजा करो
ते देवा  – ऐसे देवता (जिनकी इस प्रकार पूजा की जाती है)
व:- तुम्हे  
भावयन्तु –  पोषण दें (भोजन, पानी आदि प्रदान कर)
परस्परं – एक दूसरे के 
भावयन्त:- इस प्रकार सहायक होना
परम श्रेयः – मुक्ति का महान लाभ
अवाप्स्यथ – प्राप्त होगा

सरल अनुवाद

“[हे इस संसार के निवासियों!] इस यज्ञ के माध्यम से, [तुम ] इन देवताओं  (जो मुझे अपने अंतर्यामी के रूप में मानते हैं) का  पूजा करो  ; वे (बदले में) तुम्हे  (भोजन, पानी आदि प्रदान कर) पोषण करें  | इस प्रकार एक-दूसरे के सहायक बनने से तुम्हें मुक्ति का महान लाभ प्राप्त होगा।”

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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