३.२२ – न मे पार्थास्ति कर्तव्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥

पद पदार्थ

हे पार्थ – हे कुंतीपुत्र !
त्रिषु लोकेषु – तीन प्रकार के जाती [ देव , मनुष्य और जानवर ( पाशविक) ]
मे – मेरे लिए [ जो सर्वेश्वर हूँ ]
कर्तव्यं – कर्तव्य जो निभाना चाहिए
किंचन – ऐसा
न अस्ति – कुछ भी नहीं है

( क्योंकि )
अनवाप्तम् – अधूरा
अवाप्तम् – सिद्ध करना ( कर्म के माध्यम से )
किंचन – ऐसा
न अस्ति – कुछ भी नहीं है
च – फिर भी
कर्मणि – कर्तव्यों में ( वर्णाश्रम धर्म से संबंधित )
वर्त एव – व्यस्त हूँ

सरल अनुवाद

हे कुंतीपुत्र ! मेरे लिए, जो सर्वेश्वर हूँ , जो तीन प्रकार के जाती में जन्म लेता हूँ , ऐसा कोई कर्तव्य नहीं है जिसे निभाना चाहिए ; (क्योंकि) मुझे ( कर्म के माध्यम से) सिद्ध करना हो, ऐसा कुछ भी नहीं है ,जो अब तक अधूरा हो | फिर भी मैं (वर्णाश्रम धर्म से संबंधित )कर्तव्यों में व्यस्त हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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