३.२३ – यदि ह्यहं न वर्तेयं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥

पद पदार्थ

पार्थ – हे अर्जुन !
अहं हि – मैं , सर्वेश्वर
कर्मणि – इन कर्मों में ( मेरे कुल संबंधित कर्म )
जातु – हमेशा
अतन्द्रितः – बिना आलस्य के
यदि न वर्तेयं – अगर ढृढ़ता से स्थित नहीं हूँ
मनुष्याः – आम आदमी
सर्वशः – सभी तरीके से
मम वर्त्म – मेरे ही मार्ग को
अनुवर्तन्ते – अनुसरण करेंगे

सरल अनुवाद

हे अर्जुन ! अगर मैं , सर्वेश्वर , कर्मों में ( मेरे कुल संबंधित कर्म ) ढृढ़ता से स्थित नहीं हूँ और बिना आलस्य के, उनका पालन नहीं करूंगा , तो आम आदमी मेरे ही मार्ग को सभी तरीके से अनुसरण करेंगे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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