४.१३ – चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

<< अध्याय ४ श्लोक १२

श्लोक

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: |
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ||

पद पदार्थ

चातुर्वर्ण्यं – समस्त जगत जो चार वर्णों के अध्यक्ष में है ( चार श्रेणी – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र )
मया – मेरे द्वारा , जो सर्वेश्वर हूँ
गुण कर्म विभागश: – गुणों ( स्वभाव ) के आधारित वर्गीकरण जैसे सत्व , रजस और तमस तथा कर्मों ( क्रिया ) के आधारित वर्गीकरण जैसे शम ( मन का नियंत्रण ), दम ( इन्द्रियों का नियंत्रण )
सृष्टं – निर्माण किया गया है
तस्य – इस विलक्षण सृष्टि इत्यादि का
कर्तारमपि – मैं सृष्टिकर्त्ता हूँ लेकिन
अकर्तारं – इस जगत के विभिन्न गुणों ( ऊँच – नीच ) इत्यादि के सृष्टिकर्त्ता नहीं हूँ

( इस कारण )
अव्ययम् – दोषरहित
मां – मुझे
विद्धि – जानो

सरल अनुवाद

समस्त जगत, जो चार वर्णों के अध्यक्ष में है, मेरे द्वारा , जो सर्वेश्वर हूँ , गुणों ( स्वभाव ) के आधारित वर्गीकरण जैसे सत्व , रजस और तमस तथा कर्मों ( क्रिया ) के आधारित वर्गीकरण जैसे शम ( मन का नियंत्रण ), दम ( इन्द्रियों का नियंत्रण ) से निर्माण किया गया है | मैं इस विलक्षण सृष्टि इत्यादि का सृष्टिकर्त्ता हूँ लेकिन जानो कि मैं इस जगत के विभिन्न गुणों ( ऊँच – नीच ) इत्यादि के सृष्टिकर्त्ता नहीं हूँ और इस कारण दोषरहित हूँ |

अतिरिक्त टिपण्णी

स्पष्टता जोड़ने के लिए कुछ और तर्क : –

  • इस श्लोक का प्रसंग , वर्ण विभाग के बारे में समझाना नहीं है , मगर यह है कि भगवान इन विविध रचनाओं से अप्रभावित हैं |
  • इसके साथ, भगवान भी समझाते हैं कि वर्ण गुणों ( स्वभाव ) के आधारित और कर्मों ( क्रिया ) के आधारित निर्माण किया गया है | उन्होंने यह नहीं बताया कि कोई अपने गुण और कर्म के आधारित अपने वर्ण को बदल सकता है | जब कोई भी, अपने पिछले कर्मों के अनुसार [कोई निरुद्देश्य विकल्प से नहीं ], एक वर्ण में जन्म लेता है , वह अपने कुल के वर्ण का अनुकरण करना चाहिए और अपने कर्तव्य को, अपने वर्ण के अनुसार , निभाना चाहिए | यह तात्पर्य बहुत ही नि: सन्देह रूप से गीता में १.३९ से १.४४ तक और १८.४५ और १८.४६ श्लोकों में भी समझाया गया है |
  • वर्ण का यह निर्माण , विशेष रूप से देह के लिए है , आत्मा के लिए नहीं , इसलिए हमारे पूर्वज कभी अपना वर्ण बदलने का प्रयास नहीं किया | उसके बदले में वे भगवान के प्रति सच्चे भक्ति विकसित किया और नित्य कैंकर्य में ध्यान दिया |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ४ श्लोक १३.५

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/4-13/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org