६.११ – शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ६

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श्लोक

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: |
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ||

पद पदार्थ

शुचौ देशे – शुद्ध स्थान पर
आत्मन: – स्वयं के लिए
स्थिरं – अटल ( लकड़ी से बना हुआ इत्यादि )
नात्युच्छ्रितं – न बहुत ऊँचा
नाति नीचं – न बहुत नीचे
चैलाजिन कुशोत्तरं – रेशमी कपड़ा , हिरण की खाल , कुश ( दर्भ ) घास , एक दूसरे के ऊपर रखा गया [उल्टे क्रम में ]
आसनं – बैठक
प्रतिष्ठाप्य – दृढ़ता से स्थापित कर

सरल अनुवाद

आसन को अटल ( लकड़ी से बना हुआ इत्यादि ) , न बहुत ऊँचा, न बहुत नीचे, रेशमी कपड़ा , हिरण की खाल , कुश ( दर्भ ) घास , एक दूसरे के ऊपर रखा गया [उल्टे क्रम में – पहले बैठक पर घास , उसके ऊपर हिरण की खाल और उसके ऊपर रेशमी कपड़ा ] , एक शुद्ध स्थान पर स्वयं के लिए दृढ़तापूर्वक स्थापित करना चाहिए |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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