श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
पद पदार्थ
धनञ्जय – हे अर्जुन!
मत्तः – मुझसे भी
अन्यत् किञ्चित् अपि – जो कुछ भी अलग है
परतरं नास्ति – उच्चतर कुछ भी उपस्थित नहीं है
सरल अनुवाद
हे अर्जुन! मुझसे बढ़कर कुछ भी उपस्थित नहीं है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-6.5/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org